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राज की बात: परमबीर सिंह को कमिश्नर पद से हटाने के पीछे क्या है 'राज'?
परमबीर सिंह को मुंबई पुलिस कमिश्नर पद से हट हुए चंद घंटे हुए हैं लेकिन सवाल ये है कि बड़े-बड़े मामलों में जब महाराष्ट्र की शिवसेना सरकार परमबीर के साथ खड़ी रही तो फिर आखिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि उन्हें छुट्टी देकर होमगार्ड का डीजी बना दिया गया?
कोरोना को आपदा मानते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आपदा में अवसर ढूढ़ने का आह्वन किया था. उनकी बात को जैसे रेलवे ने तुरंत लपक लिया और कोरोना का डर दिखाते हुए अतार्किक तरीक़े से रेलवे के किरायों में न सिर्फ बढ़ोत्तरी हुई है, बल्कि अब जनरल क्लास को ही कैसे सफ़ाई के साथ ग़ायब कर दिया गया है. देखिए ये रिपोर्ट.
बंगाल की बिसात पर लड़ाई इतनी पेचीदी हो गई है कि रोज नए दांव खेले जा रहे हैं बावजूद इसके पांसा 24 घंटे के अंतराल में ही पलटकर रह जाता है. ऐसे में बड़ा सवाल है कि आखिर ऐसी सांप सीढ़ी वाली अनिश्चितता के बीच बंगाल का बादशाह कौन साबित होगा? इस सवाल का जवाब जनता दे देगी लेकिन रिजल्ट आने से पहले राजनीति के धुंरंधरों की सांसे थमी हुई हैं.
कभी कांग्रेस के स्तंभों में गिने जाने वाली पीसी चाको अब पार्टी को अलविदा कहके सियासत का नया निशान हाथ में थाम चुके हैं. वरिष्ठ और बुजुर्ग नेताओं की ऐसी बगावत की झड़ी कांग्रेस में लगी है. कुछ पार्टी छोड़कर चले गए और कुछ पार्टी में रहकर भी पार्टी लाइन के खिलाफ खुल कर बोलते दिखे. इस फेहरिस्त में आनंद शर्मा, गुलाम नबी आजाद जैसे कई बड़े और दिग्गज नेता शामिल हैं. बुजर्ग नेताओं की इस सियासी बेवफाई पर गांधी परिवार सवालों के घेरे में आया और खास तौर पर राहुल गांधी जिनका आगामी कार्यसमिति में फिर से अध्यक्ष चुना जाना लगभग तय है.
किसान आंदोलन की आड़ में अराजकता का आलम दिल्ली, दिल्लीवासियों और दिल्ली-यूपी बॉर्डर की कानून व्यवस्था के लिए खतरा बन चुका है. आंदोलन की आड़ में बॉर्डर पर कील लगाने का विरोध करने वाले पक्के बैरकनुमा घर तैयार कर रहे हैं. राज की बात ये है कि किसानों से सख्ती करके सुर्खियों में आने वाला प्रशासनिक तंत्र आंदोलन के नाम पर हो रही मनमानी पर मौन बैठा हुआ है.
एक समय केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली आने के लिए प्रशासनिक व पुलिस अधिकारियों में होड़ मची रहती थी. उनके करियर में दिल्ली में रहने का तमग़ा एक सितारे की तरह था जो उनके करियर में चार चाँद लगाता था. साथ ही सुकून और एक बेहतर माहौल के लिहाज़ से भी उनके लिए यह प्रतिष्ठा का विषय होता था. मगर अभी अचानक तस्वीर बदल गई है. खासतौर से पुलिस सेवा के अधिकारी अब दिल्ली आने के इच्छुक नहीं रहते. ये कोई धारणा नहीं, बल्कि आंकडे़ इसकी गवाही दे रहे हैं.
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एक समय केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली आने के लिए प्रशासनिक व पुलिस अधिकारियों में होड़ मची रहती थी. उनके करियर में दिल्ली में रहने का तमग़ा एक सितारे की तरह था जो उनके करियर में चार चाँद लगाता था. साथ ही सुकून और एक बेहतर माहौल के लिहाज़ से भी उनके लिए यह प्रतिष्ठा का विषय होता था. मगर अभी अचानक तस्वीर बदल गई है. खासतौर से पुलिस सेवा के अधिकारी अब दिल्ली आने के इच्छुक नहीं रहते. ये कोई धारणा नहीं, बल्कि आंकडे़ इसकी गवाही दे रहे हैं.
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