Sandeep Chaudhary: Shivraj-Vasundhara के लिए खतरे की घंटी बज रही ? जानिए पत्रकारों की राय
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View In Appराजस्थान की राजनीति में महारानी के नाम से मशहूर वसुंधरा राजे की सियासत पर इन दिनों ग्रहण लगा हुआ है. दो बार प्रदेश की सीएम रह चुकीं वसुंधरा राजे पिछले एक साल से पार्टी में हाशिए पर हैं. चुनाव प्रचार के दौरान उन्हें साइडलाइन ही रखा गया. अब जबकि पार्टी भारी बहुमत से जीती है तो भी पार्टी ने उन्हें सीएम का विकल्प नहीं माना है. हालांकि वह रेस में हैं, लेकिन आलाकमान उनके साथ नजर नहीं आ रहा.अब बड़ा सवाल ये उठता है कि 5 बार की विधायक, पांच बार सांसद और दो बार मुख्यमंत्री रह चुकीं वसुंधरा राजे के बिना जब राज्य का कोई भी सियासी समीकरण पूरा नहीं होता है, तो फिर भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेता उनसे दूरी क्यों बना रहे हैं, जबकि विधायकों का एक बड़ा वर्ग वसुंधरा के पक्ष में है. इस सवाल का जवाब तलाशने के लिए आपको करीब 9 साल पीछे जाना होगा. 2013 की यह घटना करीब 9 साल बाद वसुंधरा का रास्ता रोक रही है.यह बात है साल 2014 की, 9 साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी भारी बहुमत से सत्ता में आई थी. पार्टी इस नतीजों से गदगद थी. बीजेपी का हर नेता जीत का सेहरा मोदी के सिर बांध रहा था, लेकिन उस वक्त वसुंधरा राजे सिंधिया ने बीजेपी की जीत को सामूहिक मेहनत बताया था. यहां से वह मोदी और मोदी पक्ष के नेताओं की नजरों में आ गईं