जानिए स्वर विज्ञान के बारें में Dharma Live
दैनिक जीवन के विभिन्न कार्यों में स्वरों की स्थिति का बहुत महत्व देखा जाता है। स्वर ज्ञाता ज्योतिषियों की भांति इसका प्रयोग करते हैं। विभिन्न कार्यों की सफलता-असफलता, शुभ-अशुभ, तेजी-मंदी, प्रश्नों के जवाब के लिए इस विद्या की सहायता ली जाती है। शरीर की मुख्य जरूरत है- प्राणवायु। इसका आवागमन शरीर की विभिन्न दस नाड़ियों द्वारा संचालित होता है। इनमें प्रमुख तीन नाड़ियां हैं- इड़ा, पिंगला व सुषुम्ना। इड़ा चंद्रप्रधान है, जो बाएं नथुने से चलती है। पिंगला सूर्य प्रधान होती है, जो दाएं नथुने से चलती है। दोनों के मध्य या सम स्थिति सुषुम्ना कहलाती है, यह वायु प्रधान होती है। इन नाड़ियों का नासिका द्वारों द्वारा श्वास लेना स्वर चलना कहलाता है। बाएं नथुने का चलना बायां या चंद्रस्वर, दाएं नथुने का चलना दायां या सूर्य स्वर तथा दोनों के बीच सम स्थिति को संधि स्वर कहा जाता है।