Chhattisgarh: माड़ के झाड़ुओं की मांग दिल्ली तक, जानिए कैसे ग्रामीणों की आय का मुख्य जरिया बना |
ABP News Bureau
Updated at:
13 Mar 2020 01:45 PM (IST)
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अबूझमाड़ का नाम सुनकर ही जहन में तस्वीरे , घने जंगल , वनवासी संस्कृति और उनकी प्राचीन परंपराओं की बन जाती है , हालांकि अबूझ का अर्थ ही होता है जिसे बुझा न जा सके जिसे समझा न जा सके । लेकिन भूपेश सरकार की पहल से इन दुर्गम इलाकों की भी महिलाओं की भी आर्थिक स्थिति मजबूत होने लगी है । माड़ के घने जंगलों में उगने वाले झाड़ू बनाने के फूल कभी यहां की महिलाओं के आय के श्रोत बनेंगे , यह बात स्थानीय लोगो के मन में भी नही आती थी । अब सरकार की पहल से अबूझमाड़ के ओरछा से महिलाएं इस फूल को जिला मुख्यालय नारायणपुर में बेच रही हैं । यही नही इनकी झाड़ू की मांग देश की राजधानी दिल्ली से भी आ रही है । अब जंगलों में मिलने वाले अन्य वनोपजों के साथ फूल झाड़ू भी ग्रामीणों की आय का मुख्य जरिया बन गया है । नक्सल हिंसा पीड़ित जिले नारायणपुर के अबूझमाड़ क्षेत्र के जंगलों में ये घास की तरह पैदा होने वाले झाड़ू के फूल हैं , जिसके कच्चे माल को महिला स्व सहायता समूहों ने खरीदकर झाड़ू बनाने का काम शुरू किया है । सबसे पहले फूलों को ये महिलाएं बराबर काटती हैं , फिर इसके फूल की साफ कर उसे झाड़ू की शक्ल देती हैं जिसके बाद यह बाजार में भेजा जाता है । यह झाड़ू अब इस क्षेत्र की पहचान बनने लगी है । राज्य सरकार और जिला प्रशासन ने बिचौलियों को दूर रखने के लिए , झाड़ू के कच्चे माल की खुली खरीद पर रोक लगा दी है ताकि इसकी तुड़ाई करने वाली और इसे झाड़ू बनाने वाली महिला स्व सहायता समूहों को ज्यादा से ज्यादा लाभ मिल सके । नारायणपुर जिला मुख्यालय की इस जगदम्बा स्व सहायता समूह को कच्चे माल से फूल झाड़ू बनाने के लिए 18 लाख रुपये का चक्रीय कर्ज दिया गया है । इस कार्य से जुड़ी महिलाओ के समूह का वन विभाग द्वारा संयुक्त बैंक खाता भी खोला गया है । झाड़ू बनाने वाली महिलाओं को एक झाड़ू के लिए तीन रुपय का भुगतान किया जाता है, इसके साथ ही झाड़ू विक्रय से प्राप्त राशि में से भी कुछ अंश इन्हें दिए जाते हैं ।