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आपातकालः न्यू इंडिया का आगाज़
मुझे गिरते-पड़ते ढलते था यकीं के शाम होगी
अभी काली रात होगी, मगर फिर नई सुबह है
ऐसी ही एक काली रात आज से 44 साल पहले आई थी...आपातकाल की वो काली रात सत्ता की मनमानी का अंधायुग बन गई...जिस आज़ादी के लिए हमारे सेनानियों ने जान की बाज़ी लगा दी थी...वो आज़ादी, आजाद हिंदुस्तान में एक बार फिर गुलाम बन गई...उस वक्त हक और इंसाफ की हर आवाज़ का गला घोंट दिया गया...लेकिन हर कोई ये जानता है कि हर अंधेरी रात के बाद एक नई सुबह आती है...असल में आपातकाल के उस अंधियारे ने ही डाली थी न्यू इंडिया की बुनियाद...जिस पर चलकर आज देश के सबसे सफल और शिखर नेता के तौर पर सामने आए हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी।
अभी काली रात होगी, मगर फिर नई सुबह है
ऐसी ही एक काली रात आज से 44 साल पहले आई थी...आपातकाल की वो काली रात सत्ता की मनमानी का अंधायुग बन गई...जिस आज़ादी के लिए हमारे सेनानियों ने जान की बाज़ी लगा दी थी...वो आज़ादी, आजाद हिंदुस्तान में एक बार फिर गुलाम बन गई...उस वक्त हक और इंसाफ की हर आवाज़ का गला घोंट दिया गया...लेकिन हर कोई ये जानता है कि हर अंधेरी रात के बाद एक नई सुबह आती है...असल में आपातकाल के उस अंधियारे ने ही डाली थी न्यू इंडिया की बुनियाद...जिस पर चलकर आज देश के सबसे सफल और शिखर नेता के तौर पर सामने आए हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी।
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डॉ. सुब्रत मुखर्जीरिटायर्ड प्रोफेसर, दिल्ली यूनिवर्सिटी
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