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CJI बोले- 'मैं रिस्क लेकर कहना चाहता हूं, किसान घरों को लौट जाएं' | Supreme Court | Kisan Andolan
कृषि कानून के विरोध में किसान पिछले 47 दिनों से आंदोलन कर रहे हैं. अब तक किसानों और सरकार के बीच कृषि कानून को लेकर 8 दौर की बात हो चुकी है, लेकिन बात बनने की जगह हर बार बिगड़ती नजर आई है. किसान तीनों कृषि कानून को रद्द किए जाने की मांग पर अड़े हुए हैं. दूसरी तरफ सरकार साफ कह चुकी हैं कि कानून रद्द नहीं होंगे, लेकिन जिन मुद्दों पर किसानों को आपत्ति है. उनका समाधान करने के लिए तैयार है, लेकिन किसान समाधान नहीं पूरा का पूरा कानून रद्द करवाना चाहते हैं. किसानों की मांग है कि सरकार जो तीनों कृषि कानून लेकर आई है, वो किसान विरोधी है, उन्हें रद्द किया जाए. दूसरी तरफ सरकार दलील दे रही है कि वो जो कानून लेकर आई है. वो किसानों के हित के लिए हैं. 2022 तक किसानों की दोगुनी आय का जो वादा किया है. वो इसी कानून के तहत पूरा होगा, लेकिन किसानों को ये बात समझ से परे लग रही है. किसानों का कहना है. कि जब उन्होंने ये कानून मांगा ही नहीं था, तो सरकार इसे लेकर क्यों आई. अब सरकार और किसानों के बीच अगली बैठक 15 जनवरी को होनी है, लेकिन उससे पहले सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में किसान आंदोलन को लेकर सुनवाई हुई. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने एक चिंता किसान आंदोलन से भड़कने वाली हिंसा को लेकर भी जताई. सीजेआई ने कहा कि अभी सबकुछ शांतिपूर्ण तरीके से हो रहा है, लेकिन अगर कुछ गलत हुआ तो हम सभी जिम्मेदार होंगे. हम नहीं चाहते कि किसी तरह के खूनखराबे का कलंक हम पर लगे. इस दौरान सीजेआई ने कहा कि मैं रिस्क लेकर कहना चाहता हूं कि किसान घरों को लौट जाएं. जिसके जवाब में किसानों के वकील दुष्यंत दवे ने कहा कि किसानों को रामलीला मैदान जाने की इजाजत मिलनी चाहिए. वे किसी तरह की हिंसा नहीं चाहते. जिसके बाद सीजेआई एसए बोबड़े ने कहा कि हम एक कमेटी बनाने का प्रपोजल दे रहे हैं. साथ ही, अगले आदेश तक कानून लागू नहीं करने का आदेश देने पर भी विचार कर रहे हैं. ताकि कमेटी के सामने बातचीत हो सके. जिसके बाद सीजेआई ने पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया आर एम लोढ़ा को कमेटी का हेड बनाने का सुझाव दिया. जिसपर किसान पक्ष के वकील दुष्यंत दवे ने सहमति जताई. इसपर अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि कमिटी के सामने भी किसान अड़ियल रुख अपनाएंगे. कहेंगे कि कानून वापस लो, लेकिन सीजेआई ने अटॉनी जनरल को ये कहते हुए चुप करा दिया कि हमें किसानों की समझदारी पर भरोसा है. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कमेटी बनाने के लिए नाम मांगे हैं. जिसपर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि कल (13 जनवरी) तक नाम सौंप दिए जाएंगे. ऐसे में बिना आदेश पास किए ही सोमवार की सुनवाई खत्म हो गई. लेकिन बड़ा सवाल ये हैं कि क्या सुप्रीम कोर्ट से किसान आंदोलन का रास्ता निकलेगा, क्योंकि किसान आंदोलन को लेकर भले ही सरकार और किसानों के बीच 8 दौर की बैठक में कोई बात नहीं बन पाई हो, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी लगातार आ रही है. 16 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर किसानों के मुद्दे हल नहीं हुए तो यह राष्ट्रीय मुद्दा बन जाएगा. जिसके बाद 6 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम किसानों की हालत समझते हैं. इसके बाद 7 जनवरी को तब्लीगी जमात मामले में सुनवाई के दौरान कोर्ट ने चिंता जताते हुए कहा कि किसान आंदोलन के चलते कहीं मरकज जैसे हालात न बन जाएं. सरकार किसानों की सुरक्षा के लिए क्या कदम उठा रही है और अब आज की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट साफ कर दिया है कि किसान आंदोलन पर उसकी पूरी नजर बनी हुई है.
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राजेश शांडिल्यसंपादक, विश्व संवाद केन्द्र हरियाणा
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