Four Women Photo Fact Check: सोशल मीडिया पर चार बुजुर्ग महिलाओं की जीप में बैठे हुए दिखाने वाली दो तस्वीरों का एक सेट तेजी से वायरल हो रहा है. इसको लेकर यूजर्स तमाम दावे कर रहे हैं. दावा हो रहा है कि जीप में बैठीं चारों बुजुर्ग महिलाएं 1971 के बांग्लादेश लिबरेशन वॉर की स्वतंत्रता सेनानी हैं और उन्होंने उसी विली जीप में अपनी 1971 की तस्वीर को फिर से उसी पोज के साथ खिंचाया है. अब इस दावे की असली सच्चाई क्या है? इसके बारे में हम आपको विस्तार से बताएंगे.


क्या है वायरल तस्वीर में?
के जे सिंह नाम के ट्विटर यूजर ने इन दो तस्वीरों के सेट को शेयर किया है. ट्वीट के कैप्शन में यूजर ने लिखा है कि 'उसी विली की जीप में चार बांग्लादेशी स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी 1971 की तस्वीर को फिर से बनाया है.' 27 मार्च की दोपहर 02:43 बजे पोस्ट गई इन तस्वीरों में ढाई हजार से ज्यादा लाइक्स और साढ़े तीन सौ से ज्यादा रीट्वीट हो चुके हैं.





इनमें पहली वायरल तस्वीर ब्लैक एंड व्हाइट है, जिसमें चार महिलाएं एक ओपेन जीप में बैठी हुई हैं. एक महिला ड्राइवर सीट पर स्टीयरिंग पकड़े हुए है और वहीं बाकी महिलाएं बंदूकें पकड़े हुए हैं. दूसरी वायरल तस्वीर कलरफुल है, जिसमें सेम पोज के साथ महिलाएं बैठी हुई हैं. एक अन्य ट्विटर पेज ने इसी दावे के साथ इस तस्वीर को शेयर किया है. इसके अलावा, यह तस्वीर फेसबुक पर भी वायरल हो रही है.



तस्वीर की जांच पड़ताल
वायरल तस्वीर की जांच को लेकर हमने ब्लैक एंड व्हाइट वाली तस्वीर पर सर्च किया और हमको 'बांग्लादेश ओल्ड फोटो आर्काइव' नाम के फेसबुक पेज पर पोस्ट की गई सेम तस्वीर मिली, जिन्हें 19 जुलाई, 2013 को शेयर किया गया था. इसके कैप्शन में लिखा हुआ था 'गांव की सैर पर बंदूक लिए पोज देतीं महिलाएं. बांग्लादेश (1965). फोटो साभार- रेनान अहमद'.



इसके अलावा, हमने पाया कि अफरीना हक नाम की एक फेसबुक यूजर ने 24 मार्च, 2021 को एक पोस्ट में इसी तरह के वायरल दावे के साथ तस्वीरों के सेट को शेयर किया था. हक ने इस दावे को खारिज किया कि वायरल तस्वीर में दिख रही महिलाएं स्वतंत्रता सेनानी थीं. हक ने दावा किया कि वायरल तस्वीर में महिलाएं उनकी मौसी थीं और यह 1965 में खींची गई थी, जब वे परिवार के सदस्यों के साथ शिकार करने गई थीं.



तस्वीर के कैप्शन में हक ने लिखा कि 'ये वह तस्वीर है, जिसमें चाचा 1965 में परिवार वालों के साथ शिकार करने गए थे. दो मौसी जिंदा नहीं हैं. कुछ पेज झूठी जानकारी के साथ लाइक और कमेंट पाने की उम्मीद में इसे प्रसारित कर रहे हैं. हक ने इन महिलाओं की तस्वीरें भी शेयर कीं, जिनमें एक में महिलाएं युवा हैं और दूसरी में वे बूढ़ी हैं.


इसके बाद हमने रेनान अहमद की प्रोफाइल चेक की, जिसे बांग्लादेश ओल्ड फोटो आर्काइव फेसबुक पेज के उस पोस्ट में टैग किया गया है. हमने अहमद के सार्वजनिक पोस्ट की जांच की और पाया कि अगस्त, 2020 में अहमद के माध्यम से पोस्ट की गई चार महिलाओं की एक ही ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीर शेयर की गई थी. पोस्ट के अनुसार, दोनों तस्वीरों में दिख रही अहमद की दादी रुकैया अहमद की मृत्यु 25 अगस्त, 2020 को हुई थी. उन्होंने कहा कि यह ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीर 1961 में ली गई थी.



छानबीन करने में हमें एक मीडिया चैनल की 31 मार्च, 2021 को प्रकाशित एक वीडियो रिपोर्ट भी मिली. वीडियो में रुकैया अहमद की बहू रिफत अहमद नजर आ रही हैं, जो स्पष्ट करती हैं कि वायरल तस्वीर एक निजी तस्वीर है. रिफत कह रही हैं कि मेरे पति के दादा अलाउद्दीन अहमद और उनका परिवार साल में दो बार पिकनिक मनाने जाता था. एक शिकार सीजन और खाना पकाने के बाद अहमद ने महिलाओं को जीप में बैठकर ऐसे पोज देने के लिए कहा जैसे कि वे शिकार करने जा रही हो. दूसरी तस्वीर के बारे में बात करते हुए रिफत अहमद ने कहा कि अपने बड़े बेटे की शादी के दौरान हम सभी पुरानी तस्वीरें लेकर आए और सभी ने उनकी सराहना की और भावुक हो गए. इसके बाद हमने 2017 में इस तस्वीर के पहले और बाद की तस्वीर बनाई, जहां चारों महिलाएं मौजूद थीं. तस्वीर में रुकैया अहमद, आयशा अहमद, रशीदा अहमद और शाहनारा अहमद दिख रही हैं.



तस्वीर की सच्चाई
इतनी खोजबीन के बाद हमने पाया कि वायरल तस्वीरों को झूठे दावों के साथ शेयर किया जा रहा है कि इन महिलाओं ने 1971 के बांग्लादेश लिबरेशन वॉर में भाग लिया था. वायरल दावा झूठा है क्योंकि तस्वीर 1960 के दशक में ली गई थी, जो युद्ध से पहले की थी और एक शिकार सत्र के बाद ली गई थी. महिलाओं के रहने वाले रिश्तेदारों का दावा है कि वे बांग्लादेश लिबरेशन वॉर से जुड़े नहीं थे. ये स्पष्ट है कि वायरल तस्वीर को भ्रामक दावे के साथ शेयर किया जा रहा है. 


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