Smartphone Apps Fact Check: सोशल मीडिया पर रॉयटर्स की एक रिपोर्ट तेजी से वायरल हो रही हो रही है. जिसमें दावा किया जा रहा है कि भारत स्मार्टफोन के लिए नए सुरक्षा परीक्षण की योजना बना रहा है और पहले से इंस्टॉल किए गए ऐप्स पर कार्रवाई करेगा. रॉयटर्स की इस न्यूज का स्क्रीनशॉट भी इंटरनेट पर खूब वायरल हो रहा है. पीआईबी फैक्ट चेक ने इस वायरल दावे की जांच की है और इसकी सच्चाई को सामने लाकर रख दिया है. आइये विस्तार से जानते हैं सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे इस दावे का सच क्या है?
क्या दावा हो रहा वायरल
दरअसल, सोशल मीडिया पर रॉयटर्स न्यूज का एक स्क्रीनशॉट वायरल हो रहा है. जिसकी हेडलाइन में लिखा है कि एक्सक्लूसिव: भारत स्मार्टफोन के लिए नए सुरक्षा परीक्षण की योजना बना रहा है, पहले से इंस्टॉल किए गए ऐप्स पर कार्रवाई करेगा. इसके अलावा, इसमें पूरी जानकारी लिखी हुई है. न्यूज समरी के मुताबिक, भारत चाहता है कि फोन निर्माता प्री-इंस्टॉल्ड ऐप्स को हटाने की अनुमति दें. प्रमुख ऑपरेटिंग सिस्टम अपडेट्स की स्क्रीनिंग को अनिवार्य करे. ऐप्स द्वारा डेटा के संभावित दुरुपयोग को लेकर चिंतित भारत सरकार. उद्योग के अधिकारियों को चिंता है कि नए नियम लॉन्च को लंबा खींच सकते हैं. इस न्यूज को मुंसिफ वेंगाटिल और आदित्य कालरा ने लिखा है.
क्या है वायरल दावे की सच्चाई
केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने अपने ट्विटर हैंडल से रॉयटर्स न्यूज का लिंक शेयर किया है और कैप्शन में लिखा है कि यह कहानी पूरी तरह से गलत है जैसा कि कहानी से पता चलता है, कोई 'सुरक्षा परीक्षण' या 'क्रैकडाउन' नहीं है. इस कहानी में शायद समझ की कमी है और ये असीमित रचनात्मक कल्पना पर आधारित है जो BIS मानक IS17737 (भाग-3) 2021 के मोबाइल सुरक्षा दिशानिर्देशों पर मंत्रालय और उद्योग के बीच चल रही परामर्श प्रक्रिया पर आधारित है. इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के लिए 100% प्रतिबद्ध है. साल 2026 तक 300 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने के लिए बढ़ते इलेक्ट्रॉनिक्स एमएफजी पर पूरी तरह से ध्यान केंद्रित किया गया है.
पीआईबी फैक्ट चेक ने राजीव चंद्रशेखर के ट्वीट को कोट करते हुए लिखा कि यह रिपोर्ट भ्रामक है.
जैसा केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने बताया कि मोबाइल सुरक्षा दिशानिर्देशों पर चल रहे परामर्श को गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया है.
ये भी पढ़ें- Fact Check: भारत सरकार से जुड़े होने का दावा कर रही राइट टू एजुकेशन एग्जाम वेबसाइट? जानें इसकी सच्चाई