तुम्हें देखते ही मुझे संदेह हो गया था... तुम्हारी नौटंकी और इसकी चापलूसी
इस अहंकार का एक अंश भी अगर आपके युवराज में होता तो मैं उनके पौरुष पर मोह जाती...
मेरी सहमती के बिना मेरा विवाह तय करने वाली आप होती कौन हैं... एक क्षत्रिय कन्या को अपना वर चुनने का अधिकार है, इतना भी नहीं जानतीं... इतनी भी बुद्धि नहीं है
किसी सुनवाई के बिना ही मुझे हथकड़ियां पहना दी गई, और पहले ही निर्णय हो चुका है की मैं अप्राधि हूं ... ये कहा का न्याय है
ऐसे उपहारों के लिए आप जैसे लोग पुंछ हिलाते होंगे ... मेरे लिए ये पैर की धूल समान है