मध्यप्रदेश की सतपुड़ा पहाड़ियों पर असीरगढ़ का किला स्थित है, जिसे कभी हिंदुस्तान के दक्षिण भाग की चाबी भी कहा जाता था



यह किला भारत को दो भागों में बांटता था. दिल्ली से असीरगढ़ तक हिंदुस्तान और असीरगढ़ से नीचे पूरा इलाका दक्षिण कहलाता था



आइए जानते हैं अकबर और गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा इस किले से कैसे जुड़े हैं



जब अकबर दक्षिणी हिस्से में कब्जा जमाना चाहता था तो उसे असीरगढ़ का किला पार करना जरूरी था



साल 1600 में जब अकबर ने अपने एक सूबेदार को जरूरी काम के लिए बुरहानपुर भेजा तो उस सूबेदार ने असीरगढ़ के किले का जिक्र कुछ इस तरह किया था



सूबेदार ने बादशाह अकबर को संदेश भेजते हुए कहा कि ऐसा किला हमने ईरान और रोम में भी नहीं देखा. यह बहुत ऊंची पहाड़ी पर बना हुआ है.



इसके आगे तीन और किले बने हैं, जिनमें न आने का रास्ता दिख रहा है और ना जाने का. इसके आगे खाली मैदान है जहां हम छिप भी नहीं सकते



किले पर लगभग 1300 तोपें हैं, अगर कोई बच-बचाकर किले के नजदीक पहुंच भी जाए तो बड़े-बड़े कढ़ाई में गरम हो रहे 30 मन तेल से नहीं बच पाएगा.



अश्वत्थामा और किले का रिश्ता ऐतिहासिक दस्तावेजों में दर्ज है. पहले यह वीरान इलाका था और लोगों के पूजा करने का स्थान था. इसका नाम अश्वतथामा था.



वहां रहने वाले लोगों का मानना है कि असीरगढ़ किले के पास एक शिव मंदिर में अश्वत्थामा हर रोज पूजा करने आते हैं क्योकि वहां के शिवलिंग पर हर रोज फुल चढ़े मिलते हैं