एक कथा के अनुसार गजमुखासुर नामक एक असुर हुआ करता था



एक दिन गजमुखासुर और गजानन का युद्ध हुआ



गजमुखासुर की कड़ी तपस्या के बाद शिव जी उसे वरदान प्राप्त हुआ था की वह किसी अस्त्र से नहीं मर सकता



युद्ध के दौरान गणेश जी ने अपने एक दांत को तोड़ा और उन पर वार किया



गजमुखासुर घबरा के मूषक बन गया और इधर उधर भागने लगा



गणेश जी ने गजमुखासुर को अपने पाश में बांध लिया



गजमुखासुर भयभीत होकर गणेश जी से क्षमा मांगने लगता हैं



गणेश जी ने उन्हें गलत कर्मों के खिलाफ आखिरी चेतावनी दी



जब गजमुखासुर का अभिमान टूटा तो उस ने गणेश जी से आग्रह किया की वह उनको अपनी सेवा के लिए रख लें



तो गणेश जी ने गजमुखासुर को मूषक के रुप में अपना वाहन रख लिया,
गजमुखासुर को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने गणेश जी की वाहन बन कर उनकी सेवा की और उनका प्रिय वाहन बनें