कल्पवास को आध्यात्मिक विकास का साधन कहा जाता है.

कल्पवास का समय पूर्ण रूप से प्रभु भक्ति को समर्पित होता है.

इसमें संगम तट पर रहकर वेदाध्ययन, ध्यान, पूजा में संग्लित रहना होता है.

खासकर कुंभ के दौरान किए कल्पवास का महत्व कई गुणा बढ़ जाता है.

कल्वास के दौरान सख्त और कठोर नियमों का पालन भी करना पड़ता है.

मुख्य रूप से कल्पवास के 21 नियम बताए गए हैं, जोकि इस प्रकार है-

सत्यवचन, अहिंसा, इंद्रियों पर नियंत्रण, सभी प्राणियों पर दया भाव,

ब्रह्मचर्य, व्यसनों से दूर रहना, ब्रह्म मुहूर्त में जागना, तीन बार नदी स्नान,

संध्या ध्यान, पिंडदान, दान, अंतर्मुखी जप, सत्संग, जप कीर्तन,

संकल्पित क्षेत्र से बाहर न जाना, निंदा ना करना, साधू-सन्यासियों की सेवा,

एक समय भोजन, भूमि शयन, अग्नि सेवन न करना, देव पूजन.