शास्त्रों में भद्रा को अशुभ माना जाता है. रक्षाबंधन, होली और मांगलिक कार्य से पहले भद्रा काल पर जरुर विचार किया जाता है.

पुराणों के अनुसार भद्रा सूर्य की पुत्री और शनि-यमराज की बहन है, माता छाया इनकी मां हैं.

भद्रा की अवधि 7 घंटे से 13 घंटे 20 मिनट तक की मानी जाती है. नक्षत्र-तिथि अनुसार समय कम, ज्यादा हो सकता है.

भद्रा आरंभ होने से पहले 2 घंटे तक मुख में, 48 मिनट कंठ में, 4 घंटे 24 मिनट हृदय में,1 घंटा 36 मिनट नाभि में.

2 घंटे कमर में और 1 घंटे 12 मिनट पुच्छ भाग में रहती है.

भद्रा का वास स्वर्ग, पाताल और पृथ्वी तीनों लोक में होता है. भद्रा का वास चंद्रमा की स्थिति के साथ बदलता रहता है.

मुख में भद्रा के वास से कार्य नाश, कंठ में धन का नाश, हृदय में प्राण का नाश, नाभि में कलह, कमर में मान हानि कराती हैं.

कर्क, सिंह राशि में चंद्रमा के होने पर भद्रा पृथ्वी पर वास करती है. कर्क, सिंह राशि में चंद्रमा के होने पर भद्रा पृथ्वी पर वास करती है.