प्रेम की आग दोनो तारफ लगी हो तो जलती रहती है, वरना भुज जाती है आज उनके कदम इस तरह क्या आए... लगता है फिजा में बहार आ गई तवायफ की जिंदगी कोठे पे शुरू होती है... और कब्रिस्तान में खत्म होती है तू मुझे चाहे ना चाहे ये तेरे बस में तो है...और मैं तुझे ना चाहूं ये मेरे बस में नहीं यकीन आए न आए तुमको लेकिन ये हकीकत है... मिले हो जबसे तुम मुझको ये दुनिया खूबसूरत है तूने मरियम का दामन और सीता की गोद देखी है... दुर्गा और काली रूप नहीं देखा कभी एक झूठ भी इंसान को तबाह कर सकता है...और कभी एक सच भी जो जीतना दूर हो...उतना ही पास रहता है दुनिया हर नई बात को पहले ठुकराती है...बाद में मान लेती है कभी-कभी सैंकड़ो साल एक पल के आगे हार जाते हैं