आचार्य चाणक्य ने एक श्लोक में बताया है कि अपमानजनक जीवन जीना मृत्यु से भी ज्यादा कष्टदायी. चाणक्य नीति कहती है कि जो लोग अपने फायदे के लिए खुद के मान-सम्मान की बलि देने से नहीं चूकते वह गीदड़ के समान हैं. ऐसे लोगों का वजूद बहुत जल्द मिट्टी में मिल जाता है, फिर न वो घर के रहते हैं ना घाट के. चाणक्य कहते हैं जिस काम के लिए आत्मसम्मान को दांव पर लगाने से पड़े उससे अच्छा है मृत्यु को स्वीकार करना. अपमानित होकर तिल-तिल मरने से अच्छा गरीबी का जीवन है ये उन लोगों के लिए है जो धन के लिए सबकुछ दांव पर लगाते हैं. अपने आत्मसम्मान से कभी समझौता न करें, यही आपके जीवन की सबसे बड़ी पूंजी है. चाणक्य कहते हैं आत्मसम्मान से जीने वाला हमेशा समाज में सम्मान का पात्र बनता है, वह मदद करता है लेकिन मदद लेता नहीं. खुशहाल जिदंगी के दो ही रास्ते हैं सम्मान और मेहनत की कमाई.