दाग देहलवी का असली नाम नवाब मिर्जा खां था वह उर्दू के आला शायर थे अपने भीतर के शायर के लिए उन्होंने दाग नाम चुना था बुलबुल-ए-दाग, फसीह-उल-मुल्क नवाब मिर्जा के ये हैं सबसे खूबसूरत शायरी हज़ारों काम मोहब्बत में हैं मज़े के 'दाग़', जो लोग कुछ नहीं करते कमाल करते हैं मिलाते हो उसी को ख़ाक में जो दिल से मिलता है, मिरी जाँ चाहने वाला बड़ी मुश्किल से मिलता है वफ़ा करेंगे निबाहेंगे बात मानेंगे, तुम्हें भी याद है कुछ ये कलाम किसका था सब लोग जिधर वो हैं उधर देख रहे हैं, हम देखने वालों की नज़र देख रहे हैं हमें है शौक़ कि बे-पर्दा तुम को देखेंगे, तुम्हें है शर्म तो आँखों पे हाथ धर लेना आशिक़ी से मिलेगा ऐ ज़ाहिद, बंदगी से ख़ुदा नहीं मिलता ग़ज़ब किया तिरे वअ'दे पे ए'तिबार किया, तमाम रात क़यामत का इंतिज़ार किया शब-ए-विसाल है गुल कर दो इन चराग़ों को, ख़ुशी की बज़्म में क्या काम जलने वालों का