आत्मा तो शरीर में ही रहती है. सोता तो केवल यह दिखने वाला शरीर है.



भीतर के समस्त क्रियाकलाप तो वैसे ही चलते रहते हैं.



दिमाग का भी केवल एक भाग सोता है.



मन विचार करना अवश्य बंद कर देता है.



आत्मा तो चेतना रूप होती है.



वह नहीं सोती न कहीं बाहर जाती है.



सोते समय शरीर भी अपनी मरम्मत करता रहता है.



आत्मा तो निरंतर विकास करती रहती है.