फांसी से ठीक पहले जोर-जोर से क्यों हंसने लगे थे भगत सिंह?

Published by: एबीपी लाइव
Image Source: @_bhagat.singh

भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को हुआ था

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उन्हें सुखदेव और राजगुरु को 23 मार्च 1931 को फांसी दी गई थी

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फांसी से ठीक पहले भगत सिंह जोर-जोर से हंसने लगे थे

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यह उनके अदम्य साहस और दृढ़ संकल्प का प्रतीक था

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भगत सिंह को किताबें पढ़ने का बहुत शौक था और फांसी से पहले वह लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे

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जब जेल के अधिकारियों ने उन्हें फांसी के लिए बुलाया

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उस वक्त उन्होंने कहा था, ठहरिये, पहले एक क्रांतिकारी दूसरे क्रांतिकारी से मिल तो ले'

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इसके बाद उन्होंने किताब बंद की और हंसते हुए फांसी के तख्ते की ओर बढ़ चले

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फांसी के तख्ते पर चढ़ने के बाद भगत सिंह ने डिप्टी कमिश्नर की ओर देखा था

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उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, मिस्टर मजिस्ट्रेट, आप बेहद भाग्यशाली हैं कि आपको यह देखने को मिल रहा है

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भारत के क्रांतिकारी किस तरह अपने आदर्शों के लिए फांसी पर भी झूल जाते हैं

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