शुरुआत में फिल्में काले और सफेद रंग में होती थीं

कुछ फिल्मों के फ्रेम्स को हाथ से रंगा जाता था

यह प्रोसेस बहुत समय लेने वाला और महंगा था

1930 के दशक में टेक्नीकलर तकनीक आई

टेक्नीकलर में लाल, हरा और नीला रंग इस्तेमाल किया जाता था

1939 की फिल्म द विजार्ड ऑफ ओज़ ने इसे फेमस किया

1950 के दशक में ईस्टमैन कलर तकनीक आई

रंगीन टीवी ने रंगीन फिल्मों की मांग बढ़ा दी

1990 के दशक में डिजिटल कलर ग्रेडिंग आ गई थी

पुरानी फिल्मों को अब डिजिटल तरीके से रंगीन किया जाता है