हिंदू चाय और मुसलमान चाय, क्या था यह कॉन्सेप्ट?

क्या आप भी जानते है हिंदू चाय और मुसलमान चाय का कॉन्सेप्ट

दरअसल यह कॉन्सेप्ट अंग्रेजों के समय से ही शुरू हो गया था

इस चाय का जिक्र गांधी जी की किताब 'हिंद स्वराज' में भी किया गया है

जब आजाद हिंद फौज के लोगों को अंग्रेजों ने गिरफ्तार किया था

तब उन्हें किले में बंद कर दिया गया था

उस समय अंग्रेज हिंदुओं और मुसलमानों को बांटने कोशिश करते थे

ऐसे में फौज के लोगों को सुबह की चाय हिंदू चाय और मुसलमान चाय के नाम पर अलग-अलग दी जाती थी

इस पर फौज के लोग दोनों चाय को एक बड़े बर्तन मिलाकर पी लेते थे

यह किस्सा आजाद हिंद फौज के लोगों ने गांधी जी को बताया था