चांदीपुरा वायरस की खोज 1965 में हुई थी

पहली बार यह वायरस नागपुर के चांदीपुर में पाया गया था

इसीलिए इसका नाम चांदीपुरा वायरस पड़ गया

जो मादा फ्लेबोटोमाइन मक्खी से फैलता है

यह वायरस मच्छर और सैंड फ्लाई के काटने से भी फैलता है

चांदीपुरा वायरस बच्चों को अपनी चपेट में लेता है

9 महीने से 14 साल के बच्चों को इससे सबसे ज्यादा खतरा रहता है

यह वायरस मक्खी या मच्छर के लार से खून तक पहुंचता है

इसके लक्षण उल्टी-दस्त कमजोरी, बेहोशी, तेज बुखार हैं

इस वायरस का अभी तक कोई एंटीवायरल ट्रीटमेंट उपलब्ध नहीं है

मरीज के लक्षणों को देखकर ही इसका इलाज किया जाता है