विवाह की कई रस्में ऐसी हैं जिनका महत्व दंपत्ति को जरुर
जानना चाहिए, क्योंकि ये आपके जीवन को प्रभावित करता है.


ऐसी ही रस्म है जिसमें विवाह की रस्मों के समय दुल्हन, दूल्हे
के बाईं ओर बैठती है, तभी शादी को पूर्ण माना जाता है.


माना जाता है कि भगवान शिव के बाएं अंग से स्त्री की उत्पत्ति हुई थी.
ये स्थान अर्धांगिनी का होता है, इसलिए दुल्हन बाईं ओर बैठती है.


बाएं हाथ को प्रेम और सौहार्द्र का प्रतीक माना जाता है. मान्यता है
कि वर बाईं ओर वधु के बैठने से वैवाहिक जीवन में खुशियां आती है.


वहीं प्राचीन काल में दूल्हे अपनी दाहिनी तरफ अस्त्र शस्त्र रखते थे
जिससे अपनी सुरक्षा कर सकें, इसलिए दुल्हन को बाईं ओर बैठाते थे.


शास्त्रों में पत्नी को वामांगिनी माना जाता है. माता लक्ष्मी सदैव
भगवान विष्णु के बाईं तरफ ही बैठती हैं.


विवाह के समय दुल्हन माता लक्ष्मी का रूप मानी जाती है और
दूल्हे को विष्णु जी का रूप माना जाता है.


यही वजह है कि विवाह में दुल्हन को दूल्हे के बाईं ओर बिठाया
जाता है और फिर शादी की रस्में पूरी की जाती है.