अफगानिस्तान की तालिबानी हुकूमत ने भारत में अपना नया एम्बेसेडर अपॉइंट किया है. इससे यहां बड़ा सवाल खड़ा हो गया है.



दरअसल, अफगानिस्तान में अब लोकतांत्रिक सरकार नहीं चल रही, बल्कि वहां अगस्त 2021 से सत्ता पर तालिबान का कब्जा है.



तालिबान ने इसी महीने कादिर शाह को भारत में चार्ज डी अफेयर्स (आसान भाषा में एम्बेसी इंचार्ज) अपॉइंट किया है.



मगर, भारत समेत किसी भी देश ने तालिबान हुकूमत को मान्यता नहीं दी है. इसलिए, भारत को तालिबानी का नया अफगान एम्बेसेडर नामंजूर है.



भारत सरकार 15 अगस्त 2021 के पहले से तैनात अफगान एम्बेसेडर (फरीद मामुंदजई) को ही अफगानिस्तान का असली एम्बेसेडर मानती है.



अब दिक्कत ये है कि अगर फरीद को ही असली एम्बेसेडर की तरह ट्रीट किया गया तो इससे तालिबान हुकूमत भारत से नाराज हो सकती है.



ऐसे में भारत ने फिलहाल यह कहते हुए मामले से पल्ला झाड़ लिया है कि यह अफगानिस्तान का अंदरूनी मामला है.



अफगानिस्तान में पता नहीं अब कब लोकतांत्रिक सरकार आएगी, क्योंकि तालिबान वहां चुनाव नहीं होने देंगे.



आपको बता दें कि तालिबानी कट्टर इस्लामिक नियम-कायदों के फॉलोअर होते हैं.



दरअसल, तालिबान एक पश्तो शब्‍द है जिसका तात्पर्य होता है- छात्र. मगर, तालिबानियों ने ये परिभाषा बदल दी है.



सामान्य शब्दों में अब तालिबान ऐसे लोगों का समूह है, जो पूरी तरह इस्लामिक कट्टरवाद से प्रेरित है.



90 के दशक में अफगानिस्‍तान पर सोवियत संघ का हमला हुआ तो अमेरिका ने अफगानी लोगों को जवाबी हमले के लिए तैयार किया था. उस दौरान कई गुटों में झड़प हुई, वहां से तालिबान का उदय हुआ था.



जब तालिबान ने ​ओसामा बिन लादेन को शरण दी थी तो 2001 अमेरिका ने तालिबान के खिलाफ जंग छेड़ दी.



उसके बाद अमेरिकी सेनाएं अफगानिस्तान में दो दशक तक रहीं, तब तक तालिबानी दुर्गम स्थानों पर छिपे रहे.



हालांकि, अगस्त 2021 में अमेरिकी सेनाएं अफगानिस्तान छोड़कर निकल गईं. इसके बाद वहां राजधानी काबुल पर तालिबान का कब्जा हो गया.