अरब का अदन बंदरगाह 1963 तक भारत का हिस्सा हुआ करता था. ये अफ्रीका, मिस्त्र और यूरोप के बीच ट्रेड लिंक स्थापित करता है



अदन पोर्ट पर तीन समंदरों का संगम होता है. लाल सागर, इंडियन ओशियन और अरेबियन सागर. इन तीनों रास्तों से आने वाले ट्रेड शिप अदन पोर्ट से होकर गुजरते थे



'द पेरीप्लस ऑफ द एरीथ्रियन सी' किताब के मुताबिक, हीरे, हाथी दांत, कपास, काली मीर्च, खजूर, शराब आदि चीजें भारत से अदन बंदरगाह तक लाई जाती थीं



अदन पर पहले मिस्त्र का कंट्रोल था और 1517 में यह ऑटोमन साम्राज्य के कब्जे में आ गया. इसके भारत के कंट्रोल में आने की कहानी 1837 से जुड़ी है



1837 में कलकत्ता से एक जहाज जेद्दाह के लिए निकला, तब भारत में ब्रिटिश हकूमत थी. अदन बंदरगाह आते आते ऑटोमन सुल्तान ने जहाज पर कब्जा कर लिया



इस बात से अंग्रेज गुस्से में आ गए और बातचीत के लिए एक दूत अदन पोर्ट भेजा. बातचीत से रास्ता निकाला गया कि पोर्ट पर सुल्तान और ब्रिटिशर्स का जॉइन कंट्रोल हो, लेकिन अंग्रेज पूरा कंट्रोल चाहते थे



एक साल तक ऐसे ही चलता रहा और अंग्रेजों ने फौज भेजकर अदन बंदरगाह पर कब्जा कर लिया. अदन पर भारत के कानून लागू होते थे और यहां कि आधिकारिक करंसी भी रुपया बन गई



साल 1850 में इसे टैक्स फ्री पोर्ट घोषित कर दिया गया. अंग्रेज इस रास्ते से अफीम, शराब, नमक और हथियार का आयात-निर्यात करते थे.



अदन से भारत के पुराने व्यापारिक रिश्ते थे इसलिए यहां गुजराती और मारवाड़ी व्यापारियों की अच्छी संख्या हो गई. यहां एक जेल भी हुआ करती थी और कई हिंदू मंदिर भी थे



साल 1937 में ब्रिटिश सरकार ने अदन बंदरगाह पर एक गवर्नर नियुक्त किया, जो सीधे लंदन रिपोर्ट करता था. इसके बाद अदन पोर्ट ब्रिटिश इंडिया से अलग हो गया, लेकिन आज भी यहां लगभग 2 लाख भारतीय रहते हैं



साल 1963 में अंग्रेजों ने अदन छोड़ दिया, लेकिन इसके बाद भी यहां भारतीय व्यापारियों का वर्चस्व बना रहा. कुछ समय बाद स्थानीय लोगों ने भारतीयों का विरोध किया और वह व्यापार करने दुबई और लंदन चले गए