हल्दीघाटी का युद्ध हारने के बाद मुगल शासक अकबर महाराणा प्रताप को मारना चाहते थे. इसके लिए उन्होंने अपने सैनिक महाराणा को ढूंढने भेजे



अकबर के सेनापति शहबाज खान ने महाराणा के कुंबलगढ़ किले को घेर लिया, लेकिन वह पहले ही पहाड़ों पर निकल गए. खूब खोजबीन के बाद भी वह नहीं मिले और शहबाज अकबर के पास लौट गया



शहबाज के जाने के बाद महाराणा वापस लौट आए. अकबर को इसकी खबर लगी तो उन्होंने फिर से शहबाज खान, मोहम्मद हुसैन, शेख तुमीर वदक्षी और मीर जादा अली खां को मेवाड़ भेजा



अकबरनामा में अबुल फजल ने लिखा है कि अकबर ने इन सेनापतियों को चेतावनी दी कि महाराणा को खत्म किए बिना वापस आए तो सबके सिर कलम कर दिए जाएंगे



इस कार्यवाही के लिए शहबाज खान को अकबर ने बहुत बड़ा खजाना दिया ताकि वह अपनी मुगल सेना में नए लोगों की भर्ती कर सके



साल 1578 में शहबाज खान के मेवाड़ पहुंचते ही महाराणा प्रताप फिर से पहाड़ों में चले गए, जिसके बाद मुगल सेना तीन महीनों तक प्रताप को पहाड़ों में ढूंढ़ती रही



महाराणा के न मिलने पर साल 1579 की शुरुआत में शहबाज खान मेवाड़ के मैदानी क्षेत्र के थानों पर मुगल अधिकारी नियुक्त करके खुद अकबर के दरबार में वापस लौट गया



महाराणा प्रताप को बिना मारे वापस लौटने पर अकबर ने शहबाज खान का सिर तो कलम नहीं किया, लेकिन नाराज होकर उसके हाथों से अजमेर की सूबेदारी छीन ली



अकबर के इस फैसले से असंतुष्ट होकर जब शहबाज खान ने दरबार में आवाज उठाई तो उसे रायसल दरबारी की निगरानी में रखवा दिया



शहबाज खान के चले जाने के बाद महाराणा प्रताप फिर से मेवाड़ लौट आए और गोगूंदा से 16 किलोमीटर दूर स्थित ढ़ोल गांव में एक साल तक रहे