अंबेडकर ने क्यों नहीं अपनाया था सिख धर्म

Published by: एबीपी न्यूज़ डेस्क
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हिंदू परिवार में जन्मे डॉ. भीमराव अंबेडकर ने धर्म परिवर्तन का फैसला किया और उन्होंने सिख धर्म पर भी विचार किया, लेकिन उन्होंने इसे अपनाया नहीं. ऐसा क्यों किया आइए जानते हैं

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शशि थरूर ने बाबा भीमराव के जीवन पर लिखी किताब में बताया के हिंदू धर्म में जातियों के बीच ऊंच नीच का भेदभाव होने के कारण उन्होनें अपना धर्म बदलने का फैसला किया था.

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जब धर्म परिवर्तन के लिए वह सभी धर्मों पर अध्यन कर रहे थे तो बाबा भीमराव को सिख धर्म में समतावाद की धारणा के बारे में पता चला था. इस कारण वे इस धर्म से काफी आकर्षित हुए थे.

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समतावादी धारणा के अंतर्गत समाज में रहने वाले आर्थिक तौर से सक्षम लोगों के साथ निर्बल और वंचित लोगों को भी आत्मविकास करने का अवसर दिया जाता है.

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बाबा साहब को जब ये एहसास हुआ कि सिख बहुसंख्यक राज्यों में भी समुदाय के लोग ऊंच-नीच की भावना रखते हैं तो उन्होंने सिख धर्म अपनाने का फैसला छोड़ दिया.

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शशि थरूर ने बाबा भीमराव की जीवनी में बताया कि सिख धर्मगुरूओं से बातचीत में अंबेडकर साहब के मन में सिख धर्म के प्रति शक पैदा हुआ था.

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अंबेडकर साहब ने थोड़ा अध्यन और करने के बाद पाया कि पंजाब में छुआछूत की समस्या काफी प्रचलित थी.

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इस प्रथा में वंचित व्यक्तियों और दलितों को समाज से अलग हटकर देखा जाता था. उनके खाने, बैठने, आने जाने के रास्ते सब सामान्य लोगों के मुकाबले अलग होते थे.

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इसके अलावा अन्य जाति के लोग ऐसे लोगों की छुई हुई वस्तु तक को गंदा और दूषित मानते थे. इस कारण उन्हें अपनी चीजों के अलावा किसी अन्य की वस्तु छूने का अधिकार नहीं था

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बाबा भीमराव को पंजाब में छुआछूत की समस्या का पता चलते ही भरोसा हुआ कि वे धर्म परिवर्तन के बाद दूसरे दर्जे के सिख बनकर नहीं रह सकते हैं.

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