एक पेड़ को बचाने के लिए बिश्नोई समाज के 300 से ज्यादा लोगों ने कटवा दी थी अपनी गर्दन

Published by: एबीपी लाइव डेस्क
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खेजड़ी नाम का एक पेड़ होता है, जिसकी रक्षा करने के लिए बिश्नोई समाज के तीन सौ से ज्यादा लोगों ने अपनी जान की कुर्बानी दे दी थी

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बिश्नोई समाज के लोग इसकी भगवान की तरह पूजा करते हैं. ये लोग खेजड़ी के पेड़ को तुलसी और पीपल के समान मानते हैं

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साल 1730 में जोधपुर के महाराजा अजय सिंह को अपने महल के लिए लकड़ी के लिए खेजड़ी का पेड़ चाहिए था

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राजा के आदेश पर सैनिक खेजड़ी का पेड़ काटने निकल गए. तभी बिश्नोई समाज की अमृता देवी पेड़ से लिपटकर बोलीं भले ही मेरी गर्दन काट दो लेकिन पेड़ काटने नहीं दूंगी

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सैनिकों ने अमृता देवी की गर्दन काट दी. पेड़ की रक्षा करने आई उनकी तीनों बेटियों और पति की भी गर्दन काट दी गई. इसी तरह एक खेजड़ी के पेड़ को बचाने के लिए 363 लोगों ने अपनी गर्दन कटवा दी थी

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खेजड़ी के पेड़ के बहुत फायदे हैं. यह इकलौता पेड़ है जो रेगिस्तान जैसी जगहों पर मई जून के समय में भी हरा-भरा खड़ा रहता है

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खेजड़ी के पेड़ के पत्तों को लूंगा कहते हैं. यह पत्ते बकरी और ऊंट के भोजन में काम आते हैं

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इस पेड़ के फूल, मींझर, फल और सब्जी अचार जैसी चीजें बनाने के काम आते हैं

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इसके फल जब सूख जाते हैं, तो उसका उपयोग सूखे मेवा और दवाइयां बनाने में होता है

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खेजड़ी की लकड़ी बहुत ही ज्यादा मजबूत होती है. इसकी लकड़ी से फर्नीचर और खेत में किसानों के इस्तेमाल के लिए हल भी बनाया जा सकता है

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