सऊदी अरब में हज तीर्थयात्रियों ने शनिवार (15 जून, 2024) को माउंट अराफात में प्रार्थना की. अरफा के दिन यह प्रार्थना की जाती है. आइए जानते हैं कि अरफा और अराफात में क्या अंतर है
अरफा और अराफात में सबसे बड़ा फर्क यही है कि इस्लामिक कैलेंडर में अरफा एक पवित्र दिन है, जबकि अराफात पवित्र स्थल है
इस्लामिक कैलेंडर के आखिरी महीने धुल हिज्जा के 9वें दिन को अरफा का दिन कहते हैं. समय के अंतर की वजह से अलग-अलग देशों में चांद निकलने का वक्त अलग होता है इसलिए अरफा का दिन भी अलग-अलग होता है
अरफा के दिन को लेकर मान्यताएं हैं कि इस दिन जो लोग सच्चे मन से अपने गुनाहों की माफी मांगते हैं, इस दिन अल्लाह उन्हें माफ कर देते हैं
अरफा के बाद देशभर के मुसलमान ईद-उल-अजहा या बकरीद मनाते हैं, जिसमें कुर्बानी दी जाती है
जो मुस्लिम हज नहीं कर रहे, वह अरफा के दिन रोजा रखते हैं, जिसे यौम-अल-अराफा कहा जाता है
अराफात उस जगह का नाम है, जहां पैगंबर मोहम्मद ने आखिरी उपदेश दिया था
मक्का में स्थित ग्रैंड मस्जिद से 20 किमी की दूरी पर माउंट अराफात है. आरफा के दिन हज तीर्थयात्री यहां इकट्ठा होते हैं और प्रार्थना करते हैं
माउंट अराफात या माउंट ऑफ मर्सी को जबल-अल-रहमाह के नाम से जाना जाता है
पूरा दिन अराफात पर बिताने के बाद तीर्थयात्री रात के समय में मुजदलिफा जाते हैं. इसके बाद वे मीना में प्रतीकात्मक शैतान स्तंभों को पत्थर मारने की रस्म करते हैं