वैज्ञानिकों ने सोना बनाने के चक्कर में गलती से माचिस का आविष्कार कर दिया



यह बात 1670 के दशक की है. जर्मनी के हैमबर्क शहर के एक तयखाने में बनी लैब में इंसानों के पेशाब से सोना बनाने का एक्सपेरिमेंट चल रहा था



यह एक्सपेरिमेंट हेनिंग ब्रांड नाम का एक शख्स कर रहा था. साल 1669 में ब्रांड पारस का पत्थर या सोना बनाने की कोशिश कर रहे थे



अमेरिकी पत्रकार और लेखक बिल ब्राइसन अपनी किताब अ सॅार्ट हिस्ट्री ऑफ नियरली एव्रिथिंग में लिखते हैं कि सोना बनाने के लिए ब्रांड ने इंसानी पेशाब का पेस्ट बनाने के साथ कई प्रयोग किए



ब्रांड को सोना तो नहीं मिल पाया, लेकिन उसे फॅास्फोरस नाम का पदार्थ मिला. उस समय इसकी कीमत सोने से भी ज्यादा थी



माचिस बनाने में फॅास्फोरस का बहुत बड़ा रोल है. पहली माचिस की डिब्बी 1826 में बनाई गई



इसे जॅान वॅाकर नाम के एक केमिस्ट ने बनाई थी. व्हाइट फॅास्फोरस इस्तेमाल होने की वजह से यह माचिस खतरा पैदा कर सकता था



साल 1844 में रेड फॅास्फोरस की खोज की गई. इसकी मदद से बनाई गई माचिस लोगों के लिए सुरक्षित साबित हुई



माचिस की तीली को सल्फर, पोटेशियम क्लोरेट, फिलर के इस्तेमाल से बनाया गया. सारे पदार्थ को एक साथ बांधने के लिए ग्लू का यूज किया गया



माचिस की डिब्बी के साइड में जो पट्टी होती है उसमें फॅास्फोरस और कांच का मिश्रन होता है. जब तीली को पट्टी पर घिसा जाता है तब उसमें से आग निकलती है