मुगल सल्तनत में रमजान को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता था.
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मुगल सल्तनत में रमजान को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता था.



मुगल सल्तनत में रमजान के चांद की पहली झलक मिलते ही 11 तोपों की सलामी दी जाती थी.
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मुगल सल्तनत में रमजान के चांद की पहली झलक मिलते ही 11 तोपों की सलामी दी जाती थी.



मुगल बड़े ही शाही तरीके से सेहरी और इफ्तार किया करते थे. इफ्तार में तरह-तरह के आब-ए-जमजम, खजूर, पकवान और मिठाईयां होती थीं.
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मुगल बड़े ही शाही तरीके से सेहरी और इफ्तार किया करते थे. इफ्तार में तरह-तरह के आब-ए-जमजम, खजूर, पकवान और मिठाईयां होती थीं.



मुगल सम्राट बाबर की डायरी 'तुज़ुक-ए-बाबरी' के अनुसार, बाबर रोजे रखते थे, लेकिन शराब और माजून का सेवन करते थे.
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मुगल सम्राट बाबर की डायरी 'तुज़ुक-ए-बाबरी' के अनुसार, बाबर रोजे रखते थे, लेकिन शराब और माजून का सेवन करते थे.



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'हुमायूंनामा' में गुलबदन बेगम लिखती हैं कि मुगलों के दूसरे शासक हुमायूं रमजान में रोजे रखते थे, लेकिन अफीम के आदी भी थे.



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'इस्लामी समुदाय का संक्षिप्त इतिहास' में सरवत सौलत लिखते हैं कि अकबर ने शुरुआत में रमजान में इबादत की, मस्जिदों में झाड़ू तक लगाते थे.



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तीसरे मुगल शासक अकबर रमजान में गरीबों को तोहफे बांटते थे और अजमेर शरीफ पैदल जाते थे.



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'तुज़ुक-ए-जहांगीरी' से पता चलता है कि जहांगीर ने अपने शासन के तेरहवें साल में रमजान के रोजे रखे और उलेमा-सैयदों के साथ इफ्तार किया था. वह गरीबों में खैरात बांटते थे.



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'अमल-ए-सालह' में लाहौरी लिखते हैं कि शाहजहां के दौर में मुसलमानों के सभी त्योहार बड़ी शान शौकत से मनाए जाते थे. रमजान के दौरान दान देने वाली संस्थाओं को 30,000 रुपये बांटे जाते थे.



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मुगल शासक औरंगजेब के शासनकाल में भी ईद और रमजान को शाही अंदाज में मनाया जाता था. डॉक्टर मुबारक अली बताते हैं कि औरंगजेब रमजान के अलावा भी सामूहिक नमाज करते थे. वह रोजे रखते, तरावीह पढ़ते और रमजान के आखिरी 9-10 दिनों में मस्जिद में रात-दिन मस्जिद में रहते.