इतिहास के पन्नों में एक ऐसे शख्स का जिक्र है जो मुगल न होते हुए भी हुमायूं की गद्दी पर बैठा था



हुमांयू की सौतेली बहन गुलबदन बानो ने अपनी किताब हुमायूंनामा में इस किस्से का जिक्र किया है. आइए जानते हैं क्या थी कहानी



गुलबदन बानो कहती हैं कि एहसान चुकाने के बदले एक भिश्ती (जो पानी ढ़ोने का काम करते हैं) को हुमायूं ने अपने सिंहासन पर बिठा दिया था



साल 1539 में शेरशाह और हुमायूं के बीच चौसा की लड़ाई चल रही थी



उस लड़ाई में हुमायूं की बाई बांह में चोट लग गई, जिसके बाद उनका एक सैनिक घोड़े की लगाम पकड़कर गंगा नदी की ओर ले गया



नदी के पास पहुंचते ही हुमायूं के घोड़े ने उन्हें पानी में गिरा दिया



उसी समय चमड़े की मश्क के साथ नदी पार कर रहे भिश्ती की नजर हुमायूं पर पड़ी



उस भिश्ती ने बादशाह हुमायूं को सुरक्षित नदी पार करवाई



भिश्ती के किए गए इस एहसान के बदले हुमायूं ने उसे दो दिनों के लिए अपने सिंहासन पर बिठा दिया



इस बात से हुमांयू के भाई कामरान उनसे खफा हो गए थे और पत्र लिखकर विरोध भी जताया