बंटवारे के वक्त पंजाब का हुसैनीवाला गांव पाकिस्तान में चला गया था, लेकिन भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु से जुड़े इस गांव को पंडित जवाहर लाल नेहरू ने पाकिस्तान से वापस ले लिया



इस एक गांव को लेने के लिए भारत को पाकिस्तान को 12 गांव देने पड़े थे. आइए जानते हैं कि बंटवारे के 14 साल बाद कैसे पाकिस्तान से हुसैनीवाला गांव लिया गया



पंजाब सरकार की एक अधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक, साल 1928 में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने लाहौर में एक जूनियर ब्रिटिश अधिकारी जॅान सेंडोस को गोली मार दी



इसके लिए ब्रिटिश सिपाही ने तीनों को गिरफ्तार कर लिया, जिसके बाद उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई



यह सजा सुनकर भारतीयों के विद्रोह के डर से अंग्रेजों ने वक्त से पहले ही 23 मार्च, 1931 को तीनों को फांसी पर चढ़ा दिया



फांसी देने के बाद जब अंग्रेज चुपचाप तीनों के शवों को जला रहे थे तो गांव वाले आ गए और तब तीनों शवों को हुसैनीवाला की नदी में बहा दिया गया



बंटवारे के समय यह गांव पाकिस्तान में चला गया. इसके कई साल बाद तीनों के परिवार वालों ने भारत सरकार से इस गांव को वापस भारतीय सीमा में लाने के लिए चिट्ठियां लिखीं



इस बात पर गौर करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने साल 1961 में पाकिस्तान सरकार से गांव वापस मांगा



इस गांव के बदले भारत सरकार ने पाकिस्तान को फजलका के बॉर्डर से सटे 12 गांव दिए



अब हुसैनीवाला गांव भारत के पंजाब राज्य के फिरोजपुर जिले का हिस्सा बन गया है