रमजान के दिनों में आजकल इफ्तार और सेहरी के समय के ऐलान के लिए लाउडस्पीकर का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन देश में एक जगह ऐसी है, जहां तोप के गोले की गूंज से लोग इफ्तार करते हैं.
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रमजान के दिनों में आजकल इफ्तार और सेहरी के समय के ऐलान के लिए लाउडस्पीकर का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन देश में एक जगह ऐसी है, जहां तोप के गोले की गूंज से लोग इफ्तार करते हैं.



बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार मध्य प्रदेश के रायसेन की यह एक अनोखी परंपरा है कि तोप की गूंज से सेहरी खत्म होती है इफ्तारी शुरू होती है.
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बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार मध्य प्रदेश के रायसेन की यह एक अनोखी परंपरा है कि तोप की गूंज से सेहरी खत्म होती है इफ्तारी शुरू होती है.



रायसेन में तोप के गोले की आवाज सुनकर वहां लोग इफ्तार करते हैं. यहां ये परंपरा भोपाल के नवाबों ने शुरू की थी.
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रायसेन में तोप के गोले की आवाज सुनकर वहां लोग इफ्तार करते हैं. यहां ये परंपरा भोपाल के नवाबों ने शुरू की थी.



तोप को रायसेन के किले के पास की एक पहाड़ी पर रखा गया है.
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तोप को रायसेन के किले के पास की एक पहाड़ी पर रखा गया है.



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यहां के एक काजी जहीरउद्दीन के मुताबिक यह परंपरा तकरीबन 250-300 साल पहले से चली आ रही है.



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जहीरउद्दीन ने बताया कि तोप के गोले की आवाज करीब 25 गांवों और 15 किमी तक पहुंचती है.



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तोप को चलाने वाले शख्स सखावत उल्लाह ने बताया कि वे रमजान में रोज सेहरी खत्म होने से आधा घंटा पहले और इफ्तार का समय शुरू होने से आधे घंटे पहले पहाड़ी पर पहुंच जाते हैं.



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तोप को चलाने के लिए रमजान के महीने में जिला प्रशासन लाइसेंस जारी करता है.



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मुस्लिम त्योहार कमेटी के अध्यक्ष आफाक खान का कहना है कि जब रमजान खत्म हो जाता है तब तोप को कलेक्ट्रेट में जमा कर दिया जाता है.



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भोपाल के एक स्थानीय व्यक्ति गुड्डू राइन और कमरुद्दीन का कहना है कि कई पीढ़ियों से वो सुनते आ रहे हैं कि किले के पास से तोप चलाई जाती है, जिसके बाद सभी इफ्तार करते हैं.