हिमाचल प्रदेश में स्थित ज्वाला देवी मंदिर में छत्र चढ़ाने की मुगल शासक अकबर की कहानी काफी मशहूर है



क्या आप जानते हैं कि अकबर ने ज्वाला देवी की जोत बुझाने की कोशिश की थी, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया और वह माता की शक्ति को मान गए



तीसरा मुगल जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर में डॅा मोहनलाल गुप्ता लिखते हैं कि ज्वाला देवी का भक्त ध्यानु भगत 1000 यात्रियों के साथ दर्शन के लिए जा रहा था



इन लोगों को अकबर के दरबार में ले जाया गया. अकबर के पूछने पर ध्यानु भगत ने बताया कि वह ज्वाला देवी मंदिर दर्शन के लिए जा रहा है और वहां बिना तेल बत्ती के अपने आप दीपक जलता है



ज्वाला देवी के चमत्कारों पर अकबर को विश्वास नहीं हुआ और उन्होंने ध्यानु भगत के घोड़े का सिर काटकर कहा कि माता से मनोकामना मांगो कि घोड़े का सिर दोबारा जुड़ जाए



ध्यानु भगत घोड़े के धड़ और कटे सिर को अकबर के पास सुरक्षित रखवाकर माता की प्रार्थना करने चला गया



ध्यानु भगत ने अपना सिर काटकर माता के चरणों में अर्पित कर दिया, जिसके बाद ज्वाला देवी प्रकट हुईं और ध्यानु भगत को फिर जिंदा कर दिया



माता ने ध्यानु को यह भी बताया कि उसका घोड़ा जीवित हो गया है. ध्यानु वापस लौटा, लेकिन जीवित घोड़े को देखकर भी अकबर को ज्वाला देवी के चमत्कार पर विश्वास नहीं हुआ



तब अकबर ने अपने सिपाहियों से ज्वाला देवी की जोत पर लोहे के तवे रखवाए और पानी का झरना मंदिर पर बहाया, लेकिन जोत पर इसका कोई असर नहीं हुआ



तब अकबर भी ज्वाला देवी की शक्ति को मान गए और सोने का छत्र चढ़ाने माता के मंदिर गए. लोकमान्यता है कि यह छत्र अर्पित करते समय गिरकर टूट गया. आज भी छत्र मंदिर में मौजूद है



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