औरंगजेब की मृत्यु 3 मार्च 1707 को 88 साल की उम्र में हुई



औरंगजेब ने अपने बेटे आजम शाह को आखिरी वक्त में एक खत लिखकर अपनी आखिरी इच्छाएं बतायी थीं. वह चाहता था कि जिस जगह उसकी मौत हो उसी के आस-पास उसे दफना दिया जाए



खत में उसने लिखा था, ‘मैंने अपने शासनकाल में लोगों के साथ जैसा बर्ताव किया उससे मैं इस काबिल नहीं कि मुझे छांव नसीब हो इसलिए मेरी कब्र पर कोई इमारत न बनाई जाए’



औरंगजेब की ख्वाहिश थी कि जो टोपियां सिलकर उसने चार रुपये दो आना कमाए हैं, उन पैसों से ही मौत के बाद का पूरा काम हो



औरंगजेब ने खत में लिखा, ‘मैंने कुरान लिखकर उसकी प्रतियां बेचीं, जिससे 305 रुपये मिले जिन्हें काजी गरीबों में बांट दिया जाए’



औरंगजेब चाहता था कि उसको दफ्न करते समय उसके चेहरे को न ढका जाए ताकि वह अल्लाह का सामना खुले चेहरे से कर सके



उसका कहना था, ‘मेरी मौत पर कोई दिखावा नहीं होगा, कोई संगीत या समारोह नहीं होगा’



औरंगजेब को बहुत सादगी के साथ दफनाया गया. कोई शाही जनाजा नहीं निकाला गया क्योंकि यही उसकी आखिरी ख्वाहिश थी



साल 1705 में औरंगजेब दक्कन के दौरे पर था. वहीं से उसकी तबियत खराब रहने लगी.1707 आते-आते हालत इतनी खराब हो गई कि दक्कन से दिल्ली पहुंचना मुश्किल हो गया



औरंगजेब की मृत्यु के बाद बेटे आजम शाह ने उसे महाराष्ट्र के खुल्दाबाद (वर्तमान में औरंगाबाद) में शेख जैनुद्दीन साहब की दरगाह के पास एक कब्र में दफनाया