मुगलों के शासन काल में इफ्तार को बेहद ही शाही और भव्य तरीके से मनाया जाता था.
मुगल काल में इफ्तार महलों में खास खाने, मीठे शरबत और खुशी के माहौल के साथ परंपरागत तरीके से मनाया जाता था.
इतिहासकार फैजुद्दीन अपनी किताब में लिखते हैं कि मुगल काल में इफ्तार की तैयारियां तीसरे पहर से ही शुरू हो जाती थीं और तंदूर गर्म किए जाते थे.
फैजुद्दीन के अनुसार मुगल बेगमें, शहजादियां और हरम की नौकरानियां मिलकर तंदूर में बेसनी रोटी, फुल्के पराठे, मीठी रोटियां और कुल्चे आदि बनाती थीं.
उन्होंने लिखा है कि महल में कई चूल्हे जलाए जाते थे, जिन पर शाही पकवान जैसे शामी कबाब, हुसैनी कबाब, दालें और करी तैयार की जाती थीं.
फैजुद्दीन बताते हैं कि इफ्तार के लिए शरबत, फालूदा, अंगूर, अनार और अन्य फलों के रस से बने पेय भी तैयार किए जाते थे. मीठे में गाजर, रोटी का हलवा और पता नहीं कितने ही तरह के तो मुरब्बे बनते थे.
उनके अनुसार आब-ए-जमजम (पवित्र जल) और मक्के के खजूर या छुहारों से मुगल रोजा खोलते थे.
उन्होंने लिखा है कि इसके बाद शाही लोग शरबत पीते और हल्के फुल्के व्यंजनों का स्वाद लेते थे और फिर नमाज के लिए जाते थे.
इफ्तार के बाद नमाज अदा की जाती थी और फिर से विस्तृत भोजन का आयोजन होता था.
फैजुद्दीन लिखते हैं कि ईद के चांद की खबर फैलते ही बधाइयां दी जाती थीं, गीत गाए जाते थे और महल में उल्लास का वातावरण छा जाता था.