मुगल बादशाह शाहजहां से जुड़ा एक बड़ा दिलचस्प किस्सा आपको सुनाते हैं



शाहजहां साल 1628 में मुगल बादशाह बने, गद्दी मिलने के साथ ही उन्हें अपनी जान को खतरे का डर लगा रहता था



सलमा हुसैन ने अपनी किताब रेसिपीज फ्रॅाम द किचन ऑफ एंपरर शाहजहां में लिखा है कि शाहजहां के खाने का मेन्यू शाही हकीम तैयार करते थे



हकीम के सुझाव से शाहजहां चांदी के वर्क वाला पुलाव खाते थे



जान को खतरे के चलते शाहजहां के करीबियों ने खाने में जहर की पहचान करने के लिए एक खास प्लेट बनवाई



इस प्लेट को कारीगरों ने खास चीनी मिट्टी से डिजाइन किया



इस प्लेट की खासियत थी कि जहरीला खाना डालते ही इसका रंग बदल जाता था या यह टूट जाती थी



शाहजहां ने अपनी सुरक्षा के लिए खाना चखने के लिए भी एक शख्स को रखा था, जो पहले खाना चखता था और फिर शाहजहां को परोसा जाता था



शाहजहां की यह खास प्लेट आज भी आगरा के म्यूजियम में रखी हुई है



म्यूजियम में रखी इस प्लेट के ऊपर 'जहर परख रकाबी' लिखा हुआ है