मुगलकाल में थोड़े से समय के लिए भारत में हिंदू राज स्थापित करने वाले हेमचन्द्र यानी हेमू को विक्रमादित्य की पदवी कब और कैसे मिली आइए जानते हैं



हेमू हरियाणा के रेवाड़ी के कुतुबपुर गांव के रहने वाले थे और उनकी किराने की दुकान थी. हालांकि, अकबरनामा में अबुल फजल ने उन्हें नमक बेचने वाला फेरीवाला बताया है



शेरशाह सूरी की सेना में हेमू को बड़ी जिम्मेदारी दी गई और आदिल शाह के शासन में उन्हें वकील-ए-आला यानी प्रधानमंत्री का दर्जा मिल गया



दिल्ली के सिंहासन पर दोबारा से हुमायूं के कब्जा करने की खबर आदिल शाह को मिली तो हेमू को मुगलों को भारत से बाहर निकालने की जिम्मेदारी दी गई



हेमू: नेपोलियन ऑफ मिडिवल इंडिया में केके भारद्वाज लिखते हैं कि 6 अक्टूबर 1556 को हेमू दिल्ली पहुंचे



हेमू के साथ 51 तोपें, 1000 हाथी और 50 हजार लोगों की सेना थी, जिससे कालपी और आगरा के गवर्नर इतने डर गए कि वे अपना शहर छोड़कर पहले ही भाग गए



साल 1556 में 6 अक्टूबर को हेमू अपनी फौज लेकर तुगलकाबाद पहुंच गए और वहां पर अपना डेरा डाल दिया



अगले दिन मुगल और हेमू की सेनाओं के बीच हुई जंग में मुगल हार गए



दिल्ली जीतने के बाद हेमू ने अपने सिर के ऊपर शाही छतरी लगाई और दिल्ली में हिंदू राज की स्थापना की



उसी समय हेमू को नामी महाराजा विक्रमादित्य की उपाधि मिली और इसके बाद से वह हेमू विक्रमादित्य कहलाने लगे