हज यात्रा के आखिरी दिन ईद-उल-अजहा या बकरीद होती है
इस्लामिक कैलेंडर के 12वें महीने जिल-हिज्जा के दसवें दिन बकरीद मनाई जाती है. इस दिन मुस्लिम किसी जानवर की कुर्बानी देते हैं
इस्लामिक जानकारों के अनुसार, कुर्बानी का सिलसिला पैगंबर हजरत इब्राहिम से शुरू हुआ
एक दिन अल्लाह पैगंबर हजरत के सपने में आए और उन्हें परखने के लिए उनकी सबसे प्यारी चीज कुर्बान करने को कहा
हजरत इब्राहिम को एक बेटा पैदा हुआ जिसका नाम 'इस्माइल' था. हजरत को उनके बेटे से प्यारी चीज कोई नहीं थी
ऐसे में पैगंबर हजरत ने इस्माइल को सारी बात बताई और इस पर उनका विचार पूछा. बेटे ने कहा जैसा आपसे कहा जाए वैसा कीजिए
कुरान में भी इसका जिक्र किया गया है. हजरत इब्राहिम अपने धर्म के लिए सच्ची निष्ठा रखते थे इसलिए वे कुर्बानी के लिए मान गए
हजरत ने बेटे की कुर्बानी के लिए जैसे ही छुरा उठाया और जब उन्होंने आंख खोली तो इस्लामइल जिंदा खड़े थे और बकरे जैसी शक्ल का जानवर कटा हुआ लेटा था
कुरान के अनुसार अल्लाह हजरत इब्राहिम की परीक्षा लेना चाहते थे. तभी से कुर्बानी की प्रथा चली आ रही है