मुगलों से गुवाहाटी हारने के बाद अहोम शासक जयध्वज सिंह को शर्मिंदगी हुई. वह इसे वापस लेना चाहते थे जिसमें लाचित बोरफुकन ने अहोमों की मदद की



यह 1661 की घटना है. जयध्वज ने हार का बदला लेने की जिम्मेदारी अपने उत्तराधिकारी चक्रध्वज को दी



अहोमों की सेना में पूरी सेना का लीडर बोरफुकन कहलाता था. लाचित को चक्रध्वज की सेना में बोरफुकन बनाया गया. लाचित बोरफुकन का जन्म 24 नवंबर 1622 में हुआ था



साल 1667 में लाचित ने मुगल सेना की तोपों में पानी भरवाकर उन्हें हरा दिया. इस तरह उन्होंने गुवाहाटी को मुगलों से आजाद करवा लिया



जब इस हार की खबर मुगल शासक औरंगजेब के पास पहुंची तो उसने गुस्से में एक विशाल सेना गुवाहाटी की तरफ भेजी. सेना वहीं डेरा डालकर बैठ गई



लाचित मुगल सेना का गुवाहाटी के कामख्या मंदिर तक पहुंचने का इंतजार कर रहे थे



लाचित ने सरायघाट पर अपना डेरा जमाया और रात के समय अपनी सेना की एक टुकड़ी भेजकर मुगल शिविर पर हमला करवा दिया



मुगल ने रिश्वत की एक झूठी चाल चली और अहोम राजा में मन में लाचित को लेकर शक पैदा करवा दिया. राजा ने जल्दबाज़ी में युद्ध का हुक्म दे दिया और अहोम हार गए



राजा चक्रध्वज की मृत्यु के बाद अहोम के नए राजा उदय आदित्य को मुगल कमांडर राम सिंह ने संधि का प्रस्ताव भेजा जिसे लाचित की सलाह से राजा ने ठुकरा दिया



मुगलों की तरफ से आखिरी हमले में लाचित अपनी बीमारी की हालत में भी युद्ध के मैदान में उतर गए. युद्ध में जीत हासिल करने के बाद साल 1672 में लाचित ने अंतिम सांस ली