मुट्ठिभर सैनिकों के साथ 10 हज़ार मुग़लों से लड़ने वाली माता भागा कौर की कहानी शायद बहुत से लोग नहीं जानते होंगे इस घटना के बाद उन्हें माई भागो की उपाधि दी गई. उनका जन्म अमृतसर के झाबल कलां में एक जमींदार मालो शाह के घर हुआ था. वह अपने पिता की एकलौती बेटी थीं माई भागो ने तीरंदाज, घुड़सवारी और युद्ध कला की शिक्षा अपने पिता से ली थी. उनका लक्ष्य गुरु गोबिंद सिंह की सेना से जुड़ना था साल 1704-05 के बीच मुगलों ने कुछ राजाओं की मदद से आनंदपुर पर हमला किया था माई भागो के पति और दोनों भाईयों समेत 40 सिखों को मुगलों से युद्ध करने की मंजूरी नहीं मिली थी तब माई भागो ने पुरुषों का रूप धारण किया और उन्हीं 40 सिखों के साथ फिरोजपुर के खिदराना गांव पहुंची जहां गुरु गोबिंद सिंह पहले से थे बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, साल 1705, मई के महीने में लगभग 300 सिख सेनाओं के साथ माई भागो मुगलों की 10 हजार सेना से पूरे साहस के साथ भिड़ गईं उस युद्ध में सभी सिख सैनिक शहीद हो गए. सिर्फ माई भागो ही जीवित बची थीं माई भागो के साहस को देखकर गुरु गोबिंद सिंह ने नानदेद में उन्हें वनवास के दौरान अपना अंगरक्षक बना लिया था गुरु गोबिंद सिंह के निधन के बाद माई भागो ने कर्नाटक में सालों तक तपस्या की और वहीं अपनी अंतिम सांस ली