मक्खली गोसाला भगवान महावीर के शिष्य थे. किसी बात पर गुरू से मतभेद की वजह से मक्खली ने एक अलग समूह बनाया जिसे 'आजीविक' कहा गया
आजीविक नास्तिक थे वे जातिवाद और धर्मवाद नहीं मानते थे इसलिए किसी भी धर्म के लोग इसे अपना सकते थे
आजीविक नियतिवाद पर भरोसा करते थे, उनका मानना था कि मनुष्य जितनी भी कोशिश कर ले भाग्य नहीं बदल सकता
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, आजीविक कठोर तपस्या करते थे. वे तपस्या के दौरान लंबे समय के लिए मिट्टी के बर्तनों में बंद हो जाया करते थे
आजीविक जैन धर्म के लोगों की तरह कपड़े नहीं पहनते थे और नंगे होकर भिक्षा मांगते थे
ये लोग कीलों पर लेटते और आग पर चलते थे. इतनी कठोर तपस्या की वजह से आजीविक दूर-दूर तक प्रसिद्ध हुए
आजीविक मौर्य काल के दौरान अपने चरम पर थे. कई दस्तावेजों से पता चलता है कि आजीविकों की संख्या जैन धर्म के लोगों से भी ज्यादा थी
बौद्ध और जैन ग्रंथों के अनुसार, आजीविकों ने सावत्ती नाम से अपना एक अलग शहर बसाया था, जिसे वर्तमान में 'श्रावस्ती' कहा जाता है
मौर्य काल में सम्राट अशोक ने उत्तर प्रदेश के बाराबंकी की पहाड़ियों में आजीविकों के लिए गुफाएं भी बनवाईं थीं