डॉ. भीमराव अंबेडकर ने 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में दीक्षाभूमि में अपने 3.65 लाख फोलोअर्स के साथ बौद्ध धर्म अपनाया था.
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भीमराव अंबेडकर का जन्म हिंदू धर्म के एक दलित परिवार में हुआ था, लेकिन वह अपना धर्म बदलना चाहते थे.
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शशि थरूर ने भीमराव अंबेडकर की जीवनी में लिखा कि बाबा साहब ने अपने पूरे जीवन में हिंदू धर्म में होने वाले जातिवाद को लेकर काफी संघर्ष किया था.
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भीमराव की जीवनी के अनुसार उन्होंने जातिवाद और दलितों के साथ होते बुरे व्यवहार से बेहद दुखी होकर अपना धर्म परिवर्तन करने का फैसला लिया था.
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भीमराव अंबेडकर ने धर्म बदलने के लिए सभी धर्मों का अध्ययन किया था, जिसमें इस्लाम से लेकर सिख और ईसाई धर्म भी शामिल थे.
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शशि थरूर ने भीमराव अंबेडकर की जीवनी में बताया कि उन्हें बाकी सभी धर्मों के मुकाबले बौद्ध धर्म में परिवर्तित होना सबसे उचित लगा था.
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भीमराव का मानना था कि बौद्ध धर्म में जन्म के आधार पर सामाजिक वर्गीकरण नहीं होता है. इस धर्म में सभी के धार्मिक और आध्यात्मिक मूल्यों का सम्मान किया जाता है.
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बाबा साहब को लगा कि बौद्ध धर्म में परिवर्तन करने से दलित समाज को अन्य धर्मों की तरह बराबरी का हक मिल सकता है.
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शशि थरूर ने भीमराव पर लिखी उनकी जीनवी में बताया कि अंबेडकर साहब ने स्वयं के और अपने परिवार के धर्म परिवर्तन की घोषणा मई 1956 में की थी.
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इस घोषणा के जरिए उन्होंने अपने सभी समर्थकों को यह बताया कि वह उसी साल अक्टूबर के महीने में अपना धर्म बदलेगें.
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भीमराव अंबेडकर ने अक्टूबर में एक भिक्षु के सामने बौद्ध धर्म के पंचशील और त्रिरत्न पढ़कर गौत्म बुद्ध की मूर्ति के सामने साष्टांग नमन किया और उनके चरणों में सफेद फूल अर्पित किए और अपना धर्म बदल लिया था.