जहांगीरी घंटा को मुगल बादशाह जहांगीर ने बनवाया था

उसने जनता की आवाज सुनने के लिए इसका निर्माण करवाया था

जनता मुश्किल समय में अपनी आवाज बादशाह तक पहुंचाने के लिए जंजीर खींचकर घंटा बजाती थी

इसको कोई भी इंसान बजा सकता था और जहांगीर खुद न्याय करने पहुंचते थे

इस घंटी की वजह से जहांगीर ने अपने न्याय के लिए इतिहास में स्थान बनाया

इस घंटे की जंजीर 240 किलोग्राम सोने से बनी थी

जहां जहांगीरी घंटा लगा था बाद में वहां शाहजहां ने मुसम्मन बुर्ज बनवा दिया था

यहीं से शाहजहां अंतिम दिनों में ताजमहल को देखा करते थे

उन्होंने ताजमहल का निर्माण अपनी बेगम की याद में करवाया था