कबीर दास जी के दोहे जिंदगी का असली ज्ञान देते हैं आइये जानते हैं, कबीर दास जी 10 लोकप्रिय दोहे... बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि। हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।। जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय। यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोय।। जैसा भोजन खाइये , तैसा ही मन होय। जैसा पानी पीजिये, तैसी वाणी होय।। दुख लेने जावै नहीं, आवै आचा बूच। सुख का पहरा होयगा, दुख करेगा कूच।। तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय, कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय। जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ, मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ। माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर। कर का मन का डार दे, मन का मनका फेर ।। कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हँसे हम रोये। ऐसी करनी कर चलो, हम हँसे जग रोये। नहाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाए। मीन सदा जल में रहे, धोये बास न जाए। जीवत कोय समुझै नहीं, मुवा न कह संदेश। तन-मन से परिचय नहीं, ताको क्या उपदेश।