पूजन के दौरान हुई त्रुटियों की पूर्ति के लिए आरती की जाती है.

अगर पूजा के बाद आरती न की जाए, तो पूजा अधूरी मानी जाती है.

आरती के लिए सदैव घी का दीपक या कर्पूर जलाकर आरती की जाती है.

आरती हमेशा सुबह-शाम नियमित रूप से की जानी चाहिए.

दीपक में बत्तियों की संख्या एक, पांच या सात रखनी चाहिए.

आरती की थाली को ओम की आकृति बनाते हुए घुमाना चाहिए.

भगवान के चरणों के पास चार बार, नाभि के पास दो बार और मुख के पास एक बार आरती घुमानी चाहिए .

आरती करते समय ध्यान रखें कि आरती की थाली को दोनों हाथों से पकड़ना चाहिए.

आरती को हमेशा घंटा और मृदंग बजाते हुए करनी चाहिए.

आरती हमेशा स्पष्ट उच्चारण में और लयबद्ध तरीके से गानी चाहिए.