अमृतसर के स्वर्ण मंदिर को श्री
हरमंदिर साहिब के नाम से जाना जाता है. ये मंदिर अपने अंदर लाखों खूबियां समेटे हुए है.


महाराजा रणजीत सिंह ने गोल्डेन
टेम्पल के निर्माण के करीब दो सौ साल बाद 1830 में इस पर सोने की परत चढ़ाई थी.


इस काम में 162 किलोग्राम सोने
का इस्तेमाल किया गया था, जिसकी कीमत उस समय 65 लाख रुपए थी.


90 के दशक में इसे 500
किलोग्राम सोने के साथ पुनर्निर्मित किया गया था.


यह सब 24 कैरेट सोने का बना
है, जो कि भारतीय घरों में मौजूद सोने के मुकाबले ज्यादा शुद्ध है.


इस गुरुद्वारे में बहुत बड़ा सरोवर
बना हुआ है. जिसे अमृत सरोवर कहा जाता है. इस सरोवर में पूजा से पहले श्रद्धालु स्नान करते हैं.


कुछ धर्म गुरुओं की मानें तो इस
अमृत सरोवर में डुबकी लगाने से सभी बीमारियां दूर हो जाती हैं.


आपको जानकर हैरानी होगी कि
इस स्वर्ण मंदिर में ही दुनिया का सबसे बड़ा लंगर बनता है.


अमृतसर का ये गुरुद्वारा करीब
400 साल पुराना है. ये पूरे विश्व में शिल्प सौंदर्य की एक अनूठी मिसाल पेश करता है.


मंदिर की नक्काशी और सुंदरता
पर्यटकों का मन मोह लेती हैं. इसका यश लगभग 25 वीं सदी तक रहेगा.