शराब पर गढ़े गए ये शेर, पढ़कर ही हो जाएगा 'नशा'

Published by: एबीपी लाइव
Image Source: Pexels

'ग़ालिब' छुटी शराब पर अब भी कभी कभी
पीता हूँ रोज़-ए-अब्र ओ शब-ए-माहताब में

- मिर्ज़ा ग़ालिब

Image Source: Pexels

'साज़' जब खुला हम पर शेर कोई 'ग़ालिब' का
हम ने गोया बातिन का इक सुराग़ सा पाया

- अब्दुल अहद साज़

Image Source: Pexels

तुम शराब पी कर भी होश-मंद रहते हो
जाने क्यूँ मुझे ऐसी मय-कशी नहीं आई

- सलाम मछली शहरी

Image Source: Pexels

शिकन न डाल जबीं पर शराब देते हुए
ये मुस्कुराती हुई चीज़ मुस्कुरा के पिला

- अब्दुल हमीद अदम

Image Source: Pexels

कौसर का जाम उस को इलाही नसीब हो
कोई शराब मेरी लहद पर छिड़क गया

- इमदाद अली बहर

Image Source: Pexels

ज़ाहिद शराब-ए-नाब हो या बादा-ए-तुहूर
पीने ही पर जब आए हराम ओ हलाल क्या

- हफ़ीज़ जौनपुरी

Image Source: Pexels

ता-मर्ग मुझ से तर्क न होगी कभी नमाज़
पर नश्शा-ए-शराब ने मजबूर कर दिया

- आग़ा अकबराबादी

Image Source: Pexels

बे-अब्र रिंद पीते नहीं वाइ'ज़ो शराब
करते हैं ये गुनाह भी रहमत के ज़ोर पर

- रियाज़ ख़ैराबादी

Image Source: Pexels

मय-कशी में रखते हैं हम मशरब-ए-दुर्द-ए-शराब
जाम-ए-मय चलता जहाँ देखा वहाँ पर जम गए

- हसरत अज़ीमाबादी

Image Source: Pexels

ग़म ओ नशात का कितना हसीन संगम है
कि तारा आँख से टूटा शराब पर ठहरा

- जमुना प्रसाद राही

Image Source: Pexels