आज ही के दिन हुआ था लिट्टे के सरगना का खात्मा, जिसके कारण गई थी भारत के पूर्व PM राजीव गांधी की जान, जानें कौन था प्रभाकरण?



भारत सरकार से दुश्मनी मोल लेने वाले 'लिट्टे' की कहानी आपने भी सुनी होगी. इसी के कारण PM राजीव गांधी को जान गंवानी पड़ी थी.



'लिट्टे' (LTTE) का फुलफॉर्म है- लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम. यह श्रीलंका का एक प्रमुख उग्रवादी संगठन था.



'लिट्टे' श्रीलंका के उत्तरी और उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में दो दशकों से अधिक समय तक सक्रिय रहा.



'लिट्टे' ने उत्तरी और पूर्वी श्रीलंका में एक स्वतंत्र तमिल राज्य, ईलम की स्थापना की मांग की थी.



'लिट्टे' की स्थापना 1976 में हुई, वेलुपिल्लई प्रभाकरण की पहचान उसके उत्तराधिकारी के रूप में की गई, जिसे उन्होंने 70 के दशक में बनाया था.



वेलुपिल्लई प्रभाकरण ने अपने इस संगठन के लड़ाकों को 'तमिल टाइगर्स' नाम दिया, जो 'गुरिल्ला युद्ध' में माहिर थे.



1980 के दशक में प्रभाकरण का श्रीलंका में आतंक बहुत बढ़ गया था. हिंसा के कारण वहां 3 हजार के करीब तमिल लोग मारे गए. जिनमें काफी लोग भारतीय भी थे.



भारत सरकार ने श्रीलंका को 'लिट्टे' से बचाव के लिए मदद का ऐलान किया. उस वक्‍त प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे.



जनवरी 1987 में श्रीलंका के राष्ट्रपति जेआर जयवर्धने ने 'लिट्टे' और तमिलों के गढ़ जाफना में मिलिट्री शासन लागू कर दिया और 10 हजार सैनिक उतार दिए.



1989 में राजीव गांधी चुनाव हार गए और वीपी सिंह नए भारतीय पीएम बने. तब भारत ने श्रीलंका से अपने सैनिकों को वापस बुला लिया.



हालांकि, लिट्टे भारत से खफा था, और 1991 में उसने एक आत्मघाती हमले में राजीव गांधी की हत्या करवा दी.



1999 में भारतीय रक्षामंत्री जॉर्ज फर्नांडिस ने राज्यसभा में बताया कि श्रीलंका में भारतीय सेना के 1165 जवान शहीद हुए और 3009 जवान घायल हुए थे.



उधर, श्रीलंका सरकार ने अपने ही देश में लंबी लड़ाई लड़ी और लिट्टे (LTTE) को हराया.



2009 में 18 मई को श्रीलंका सरकार ने लिट्टे के चीफ प्रभाकरण को मौत के घाट उतारने के बाद लिट्टे के खात्मे की घोषणा की.