क्या है जैन धर्म में संन्यास लेने की प्रथा



संन्यास लेने के बाद इंसान मोह, माया, राग-द्वेष से हो जाता है दूर



सांसारिक मोह माया का त्याग कर बन जाते हैं संन्यासी



दीक्षा लेने के बाद कुछ नियमों के लिए होना पड़ता है समर्पित



हमेशा सच बोलना और सच का साथ देना होता है इन्हें



दीक्षा लेने वाले साधु-साध्वियों को छोड़ना पड़ता है अपना घर, कारोबार, करियर



संन्यास लेने की प्रक्रिया पूरी करने के लिए हाथों से नोचकर निकालते हैं सिर के बाल



इसके बाद साधु कपड़ों का पूरी तरह से कर देते हैं त्याग



साध्वियों को सफेद रंग की सूती साड़ी पहनने के लिए दी जाती है



सूर्यास्त के बाद जैन मुनि न कुछ खाते हैं न ही पानी की एक भी बूंद लेते है



कभी किसी गाड़ी का इस्तेमाल नहीं करते, नंगे पैर ही करते हैं यात्रा



कभी भोजन नहीं पकाते, घर-घर जाकर मांगते हैं भिक्षा